दयानंद कुमार / एफएमटीएस न्यूज़ / रिपोर्टर
पटनाःलोक जनशक्ति पार्टी में चिराग पासवान अकेले पड़ गये हैं। उनके पांच सांसदों ने गुपचुप बैठकों के जरिये उनके ही ‘बंगले’ में उन्हें एक कोने में धकेल दिया। अब अगर आम जनमानस के हिसाब से देखें तो कई बड़े पॉलिटकल जोड़तोड़ की तरह यह भी मात्र एक घटनाक्रम ही तो है। लोग कुछ दिनों में इसे भुला देंगे। यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कोई नया आकार ले लेगी। लेकिन जैसी कि समाजिक परंपरा रही है, हमें इस घटनाक्रम से भी सबक लेना चाहिये। लाइव बिहार पांच अलग-अलग नामों से इन सीखों को सबके साथ बांटना चाहता है। रीडरों की सुविधा के लिहाज से हमने इन सीखों का नामाकरण कुछ इस प्रकार किया है- पारस, चंदन, वीणा, केसर और प्रिंस।
पहली सीख- पारस
विरासत नाम की कोई चीज नहीं होती। अपनी विरासत खुद गढ़नी होती है। ये ट्रांसफर नहीं होता। चाचा का सम्मान करना चाहिये। चुनौती नहीं देनी चाहिये। रह-रह कर उंगली नहीं करनी चाहिये। नहीं तो चच्चा आपको पूरे पब्लिक में बना देंगे बच्चा। अपमान सारे रिश्तों की मासूमियत का कत्ल कर देता है। सारांश- अगर यह सब करना ही हो तो पप्पा को राजी कर लो कि वे चच्चा को पहले ही बना दें बच्चा नहीं तो विरासत मिलते ही खा जाओगे गच्चा। सबसे बड़ी बात- चाचा ने अखिलेश के हुये और न ही चिराग के, इसलिये अपने बच्चों की परवरिश मामा के हाथ दो।
दूसरी सीख- चंदन
जो आपके सबसे करीब हो, वो आपको ऐसी जगह डसेगा जहां आपको पानी भी नहीं मिलेगा। वो हमेशा इसी फिराक में रहेगा। हालांकि पूरी दुनिया को दिखायेगा कि वो आपकी फिक्र करता है। लेकिन जब मौका मिलेगा तो वो खुद की फिक्र आपके दुश्मन से करवायेगा। ऐसा तमाशा कि सबको लगे इसके साथ बुरा हुआ। सारांश- अपने बच्चों और पत्नी के अलावा कभी किसी को बहुत करीब मत आने दो नहीं तो बाप बच भी गये तो बेटा डस लिया जायेगा। कीप डिस्टेन्स। और आप भी दिखाते रहिये कि आपको फिक्र है नहीं तो…
तीसरी सीख – वीणा
ऐसा कभी संभव नहीं कि पत्नी अलग मत की हो और पति उसको दरकिनार कर अलग मत का हो जाये। ऐसा अपवाद करोड़ों में भी न मिलेगा। इसलिये ऐसे किसी जोड़े में से किसी एक को अपनी टोली में लाने का मतलब है, बेवजह की मुसीबत मोल लेना। और उसे करीबी बना लेने का मतलब है… आ बैल मुझे मार। तो अंत में वो आपको सींग मारेगा ही और आपके जीवन के वीणा के तार हिल जायेंगे। इसलिये सतर्क रहिये।
चौथी सीख- केसर
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया। यह मुहावरा हमेशा याद रखो। और इस मुहावरे पर चलनेवाले लोगों से सतर्क रहने में ही परहेज। जिनका परिवार किसी एक घर में न रहे, बार-बार घर तोड़ता फिरे उन पर निगाह रखो। उसकी नब्ज जोर से दबाते रहो।
पांचवी और आखिरी सीख- प्रिंस
घर में भी जात, बिरादरी में मिलावट मायने रखती है। अगर आपके पिता और मां दो अलग-अलग जातियों से आते हों तो आप पहले ही परिवार के स्तर पर दरकिनार कर दिये जायेंगे। वर्णशंकर को कभी भारतीय परिवार में सर्वोपरि की उपाधि नहीं मिलती और जब मौका आयेगा तो पूरा परिवार आपको आपके खिलाफ खड़ा मिलेगा। इस बात को गांठ बांधकर ही निर्णय लिया कीजिये।