अजीत सिंह राजपूत FMTSन्यूज़
बिहार के लोकप्रिय कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. प्रभात अब इस दुनिया में नहीं रहे. कोरोना होने के बाद लगातर जिंदगी की जंग लड़ते- लड़ते आखिरकार डॉ. प्रभात हैदराबाद के किम्स अस्पताल में जिंदगी की जंग हार गए.
पटना. किसी को यकीन नहीं हो रहा कि बिहार के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट ( cardiologist) डॉ. प्रभात अब इस दुनिया में नहीं रहे. ऐसा इसलिए क्योंकि लोग उन्हें डॉक्टर नहीं सचमुच धरती के भगवान ही मानते थे. कोरोना होने के बाद लगातर जिंदगी की जंग लड़ते- लड़ते आखिरकार डॉ प्रभात कुमार (Prabhat Kumar) हैदराबाद के किम्स अस्पताल में जिंदगी की जंग हार गए. पटना के मेडिका अस्पताल के वाइस प्रेसिडेंट पद पर रहते हुए हर दिन न जाने कितने लोगों की एंजियोप्लास्टी कर जान बचाते थे. उनके प्रयास से सैकड़ों लोगों का दिल जरूर धडक़ रहा है, लेकिन डॉ. प्रभात की धडक़नें हमेशा के लिए थम गईं.
डॉ. प्रभात पिछले 15 दिनों पहले अचानक कोरोना की चपेट में आए और ऑक्सीजन लेवल नीचे जाने लगा. तभी परिजनों ने मेडिवर्सल अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन हालत बिगड़ती चली गई. गम्भीर हालत में ही उन्हें एयर एंबुलेंस से हैदराबाद ले जाया गया. उन्हें यहां किम्स अस्पताल में इकमो पर उन्हें रखा गया. इस बीच उनकी सांस नली का ऑपरेशन भी किया गया, लेकिन अचानक हार्ट अटैक आने के बाद उनका निधन हो गया. डॉक्टर प्रभात के निधन के बाद चिकित्सा जगत में शोक की लहर दौड़ गई है.
डॉ. प्रभात को बिहार के एंजियोप्लास्टी का जनक भी कहा जाता है. उनके निधन पर सीएम नीतीश कुमार ने शोक जताया है. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने शोक जताते हुए इसे व्यक्तिगत क्षति बताया है. वहीं आईएमए के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने नम आंखों से शोक जताते हुए कहा कि बिहार में अब दूसरा प्रभात नहीं होगा. वह डॉक्टर नहीं सचमुच भगवान का रूप थे. चिकित्सा जगत के लिए इससे बड़ी क्षति नहीं हो सकती है कि ऐसे युवा होनहार और हरदिल अजीज असमय काल के गाल में समा गए. 1997 में पीजी करने के बाद दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में डॉ. प्रभात ने बतौर कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में सेवा दी थी. बाद में पटना आकर हार्ट हॉस्पिटल भी संभाला. उसके बाद मेडिका को इन्होंने पहचान दिलाई और दिल की बीमारी के लोकप्रिय चिकित्सक बन गए.