सुनील कुमार/एफएमटीस न्यूज़- भाजपा-जेडीयू के 50 से अधिक नेता बेचैन…नियुक्ति वाली फाईल कहां अटकी है ? इधर NDA सरकार तो चैन की बांसुरी बजा रही,ऐसा लग रहा जैसे कार्यकर्ताओं का ‘वैल्यू’ ही नहीं।
Bihar Politics:- बिहार में सत्ता की मलाई मुट्ठी भर राजनेता खा रहे, बाकी तो इंतजार में हैं। इंतजार की घड़ियां कब खत्म होगी, यह बताने वाला कोई नहीं. सितंबर 2024 में पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं में तब आस जगी जब बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन हुआ। इस आयोग में सत्ताधारी दल भाजपा-जेडीयू के छह नेताओं को जगह दी गई थी। तब कहा गया था कि एक-दो दिनों में खाली पड़े सभी बोर्ड-निगम आयोगों को भर लिया जाएगा। सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं को एडजस्ट करने की तैयारी थी। लेकिन सितंबर से दिसंबर आ गया, नियुक्ति वाली फाईल कहां अटकी है, किसी को पता नहीं। बेचारे नेता-कार्यकर्ता टुकुर-टुकुर देख रहे हैं, जैसे-जैसे समय बीत रहा, जेडीयू-भाजपा के नेताओं के अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही है।
सत्ता का मजा सिर्फ विधायक-मंत्री ही लेंगे…?
बिहार में भाजपा-जेडीयू-हम की सरकार है। तीनों दल के नेता मंत्री बन बैठे हैं, बाकी नेताओं-कार्यकर्ताओं को सत्ता सुख भोगने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं के परिश्रम की बदौलत ही पार्टी सरकार में आती है, दल के नेताओं को मंत्री बनाया जाता है। लेकिन जिन छोटे नेताओं-कार्यकर्ताओं के मेहनत की बदौलत भाजपा-जेडीयू आगे बढ़ रही है, सत्ता में आने के बाद पार्टी उन्हें ही भूल सी जाती है। खासकर बिहार भाजपा की स्थिति तो और भी खराब है। पार्टी का 2017 से यही रवैया रहा है। भाजपा के लिए यह लाईन सटीक बैठती है, ” बड़े नेता खा रहे मलाई..छोटे को सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं”।
एनडीए सरकार बनते ही कई आयोग हुए थे भंग
जनवरी 2024 में सूबे में नई सरकार के गठन के ठीक बाद ही कई आयोगों को भंग कर दिया गया था। बिहार महिला आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जन जाति, अति पिछड़ा वर्ग आयोग, संस्कृत शिक्षा बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, महादलित आयोग, मदरसा बोर्ड, नागरिक पर्षद, सवर्ण आयोग समेत कई अन्य आयोग खाली है। खाद्ध आयोग, पिछड़ा आयोग में भी सदस्य का पद खाली है। खाली पद पर नियुक्ति कब होगी…इस बारे में किसी को पता नहीं। सरकार इन आयोगों में हमेशा राजनीतिक दल के नेताओं को ही नियुक्त करते आई है। यानि जिस दल की सरकार होती है, उस पार्टी के नेताओं को आयोग-निगम में एडजस्ट किया जाता है।
तब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था..बहुत जल्द भरेंगे
9 सितंबर 2024 को बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. दिलीप जायसवाल ने जेडी(यू) के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा के साथ बंद कमरे में बैठक की थी। इसके बाद उन्होंने मीडिया से कहा था कि “सब कुछ तय हो चुका है। विस्तार कभी भी हो सकता है। हम तैयार हैं। हम निगमों और बोर्डों के रिक्त पदों को भी बहुत जल्द भरेंगे।” अब इस मुद्दे पर बोलने को कोई तैयार नहीं। भाजपा-जेडीयू नेतृत्व इस सवाल से दूर भाग रहा।
आखिर कहां फंसा है पेंच…? राजद से सीखने की जरूरत
बिहार में एनडीए सरकार के दौरान कार्यकर्ताओं को सेट करने में परेशानी होती रही है. कारण यह की भाजपा समय से अपने नेताओं की लिस्ट सरकार को नहीं सौंपती. यही वजह है कि बार-बार मामला फंसता है। जबकि जेडीयू-राजद गठबंधन की सरकार में ऐसी समस्या नहीं आती। इस उदाहरण से समझिए… 10 अगस्त 2022 से 29 जनवरी 2024 तक महागठबंधन की सरकार थी। तब तेजस्वी यादव ने एक झटके में ही पार्टी के सैकड़ों राजनैतिक कार्यकर्ताओं को सरकारी सिस्टम में एडजस्ट करवा दिया था. तमाम बोर्ड-निगमों में जेडीयू-राजद के नेताओं को अध्यक्ष-सदस्य के तौर पर राजनैतिक नियुक्तियां की गई थी. सरकार में आने के बाद राजद ने अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान किया. हालांकि, यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. महागठबंधन सरकार के खात्मा के बाद सरकार ने तमाम राजनैतिक नियुक्तियां रद्द कर दी थी। तब से अधिकांश आयोग खाली पड़े हैं।
2017 से अब तक तीन बार एनडीए सरकार
2017 से अब तक तीन बार एनडीए की सरकार बनी लेकिन बीजेपी-जेडीयू सरकार में खाली पड़े आयोगों को पूर्ण रूप से भरा नहीं जा सका. 27 जुलाई 2017 से 2020 विधानसभा चुनाव तक जेडीयू-भाजपा की सरकार थी. इस दौरान सत्ताधारी कार्यकर्ताओं को एडजस्ट नहीं किया गया. कोर्ट के आदेश पर महिला आयोग समेत इक्के-दुक्के आयोग का गठन हुआ. फिर भी कई आयोग खाली रह गए, कार्यकर्ता टुकुर-टुकुर देखते रहे. विधायक-विधान पार्षद तो मंत्री बनकर मलाई खाते रहे और कार्यकर्ता हाथ मलते रह गए।
विधानसभा चुनाव से पहले सपना होगा पूरा ?
2020 विस चुनाव के बाद फिर से एनडीए की सरकार बनी. 9 अगस्त 2022 तक बिहार में एनडीए की सरकार थी. इस दौरान भी भाजपा-जेडीयू कार्यकर्ताओं को बोर्ड-निगम में एडजस्ट नहीं किया गया. कई दफे आवाज भी उठी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 29 जनवरी 2024 से अब तक बिहार में एनडीए सरकार है. लेकिन खाली पड़े बोर्ड, निगम आयोगों में नियुक्ति को लेकर बहुत ज्यादा सक्रियता नहीं दिख रही है। अब देखना होगा कि खुद को सरकारी आयोग में अध्यक्ष-सदस्य के रूप में नियुक्त होने का सपना पाले बैठे जेडीयू-भाजपा कार्यकर्ताओं का यह सपना पूरा होता है या नहीं ।
10 महीने बाद भी बोर्ड-आयोग में नहीं मिली जगह
बिहार में एनडीए की सरकार है। नई सरकार के गठन के 10 महीने से अधिक हो गए. लेकिन अभी तक सरकार खाली पड़े बोर्ड -निगम आयोग को भरने में नाकाम रही है. एक दर्जन से अधिक ऐसे आयोग हैं, जो खाली हैं। अमूमन इन आयोगों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया जाता रहा है. सितंबर 2024 में नीतीश सरकार ने बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया, जिसमें अध्यक्ष समेत छह राजनैतिक कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया गया. इसके बाद सरकार सुस्त पड़ गई. बिहार में जेडीयू-राजद की सरकार रहती है, दोनों दल के कार्यकर्ताओं को तुरंत एडजस्ट कर दिया जाता है. भाजपा-जेडीयू की सरकार में यह समस्या गंभीर हो जाती है।
पटना से सुनील कुमार/एफएमटीस न्यूज़ की खास रिपोर्ट