दयानंद कुमार / एफएमटीएस न्यूज़ / रिपोर्टर
हर साल की तरह इस साल भी बिहार में बाढ़ (Bihar Flood) ने दस्तक दे दी है. जो बचा सकें उसे बचा लें की जुगत में लोग जुट गए हैं लेकिन इन सबके बीच सवाल ये उठता है कि आखिर बाढ़ से कब तक बिहार की एक बड़ी आबादी जूझती रहेगी. हर साल एक नई उम्मीद जगती है कि बाढ़ की समस्या से निजात मिलेगी और जिंदगी आराम से चलती रहेगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू (Pandit Jawahar Lal Nehru) ने कोसी परियोजना का शिलान्यास करते हुए कहा था कि अगले पंद्रह सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण कर लिया जाएगा, किंतु 68 साल बाद भी स्थिति जस की तस है और लोग बाढ़ से जुझ रहे हैं.
बिहार का बहुत बड़ा क्षेत्र हर साल बाढ़ से प्रभावित हो जाता है. 1952 में जहां कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था जो बढ़ कर अब 68.8 लाख हेक्टेयर हो गया है. उत्तर बिहार की लगभग 76 प्रतिशत आबादी हर साल बाढ़ से प्रभावित होती है. बिहार देश का सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित इलाका है. देश के कुल बाढ़ प्रभावित इलाकों में 16.5 प्रतिशत इलाका बिहार का है. बाढ़ से प्रभावित होने वाले देश की कुल आबादी का 22.1 प्रतिशत हिस्सा बिहार का ही है.आखिर हर साल क्यों आती है बाढ़?
बिहार में बाढ़ की तबाही मुख्य तौर से नेपाल से आने वाली नदियों के कारण ही आती है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली जैसी नदियां नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. नेपाल में जब भी भारी बारिश होती है तो इन नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो जाती है इन नदियों का प्रवाह क्षेत्र बिहार में भी है नतीजतन बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए लेकिन ये तटबंध अक्सर टूट जाते हैं. बाढ़ से 2008 में जब कुसहा तटबंध टूटा था तो करीब 35 लाख की आबादी इससे प्रभावित हुई थी और करीब चार लाख मकान तबाह हो गए थे.
19 दिन में 17 स्थानों पर तटबंध टूटा
पिछले साल मुजफ्फरपुर में ही 19 दिन में 17 स्थानों पर तटबंध टूटा. दरअसल खराब योजना, गलत क्रियान्वयन और जलनिकासी की अपर्याप्त व्यवस्था के कारण तटबंध टूटते रहे हैं. नदियों में जमी गाद भी बाढ़ का कारण है. हिमालय से निकलने वाली नदियां अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत लाती हैं. सालों से इनकी सफाई नहीं होने के कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फैल जाता है. इसके अलावा बिहार में जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में पेड़ों की लगातार अंधाधुंध कटाई से पानी रुकता नहीं है और आबादी वाले क्षेत्र में फैल जाता है!
क्या है उपाय?
राज्य के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने साफ शब्दों में कहा है कि जब तक नेपाल में कोसी नदी पर प्रस्तावित उच्च बांध नहीं बन जाता बिहार को बाढ़ से मुक्ति नहीं मिलेगी. उत्तर बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए 1897 से भारत और नेपाल की सरकारों के बीच सप्तकोसी नदी पर बांध बनाने की बात चल रही है लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका है. इसके अलावा बाढ़ नियंत्रण की योजना बनाते समय यह ध्यान रखना होगा कि ये स्थानीय परिस्थितियों के अनुकुल हों साथ ही बाढ़ नियत्रंण के प्रतिकुल प्रभावों से बचाने वाले भी हों. नदियों में जमे गाद को भी हटा कर बाढ़ की भयावहता को कम किया जा सकता है. बाढ़ पीड़ितों के लिए सरकारी प्रयास
इस साल भी नेपाल से सटे जिलों में बाढ़ का कहर देखने को मिल रहा है. सरकार बाढ़ की हालात पर नजर बनाये हुए है. ड्रोन कैमरों से तटबंधों की निगरानी की जा रही है. तटबंधों में कटाव, रिसाव आदि की सूचना के लिए हेल्पलाइन नं. 1800 3456 145 जारी किये गये हैं. बाढ़ प्रभावित इलाकों में सामुदायिक किचेन की व्यवस्था की गयी है. स्वास्थ्य सुविधा को बरकरार रखने के लिए नाव के द्वारा डॉक्टर बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंच रहे है. राहत सामग्री के साथ साथ आर्थिक मदद भी दी जा रही है. हर साल बसने और उजड़ने का दर्द बाढ़ पीड़ित झेलते हैं. इस उम्मीद के साथ कि शायद अगले साल स्थिति सुधरेगी और वे भी चैन की जिंदगी बसर कर सकेंगे लेकिन उनका इंतजार बढ़ता ही जा रहा है!