संपादकीय
सुनील कुमार प्रदेश सचिव युवा राजद
भारत सरकार के मंत्री और बिहार भाजपा के फ़ायर ब्रांड नेता हिंदू सनातनियों को संगठित करने के लिए बिहार की यात्रा पर निकलने वाले हैं। आजकल सनातन की बहुत चर्चा है। जिसको देखिए वही सनातन की दुहाई दे रहाहैं । आख़िर सनातन है क्या, इसे कैसे समझा जाए ! शास्त्रीय बहस में नहीं जाकर देश के इतिहास में सनातनियों की क्या भूमिका रही है इसी से सनातन को समझा जाए. बात विवेकानंद जी से ही शुरू करते हैं. विवेकानंद जी के जीवन का सबसे चर्चित प्रसंग 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि रूप में उनका उद्बोधन है. लेकिन उनको वहाँ हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता कैसे मिली यह जानना बहुत दिलचस्प है. आयोजकों ने उनसे पूछा कि आप यहाँ हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं , यह कैसे माना जाए !
विवेकानंद जी ने वहाँ से शंकराचार्य जी को तार भेजा ! उनको बताया कि इस सम्मेलन में आपके द्वारा हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के अनुसार मुझे मनोनीत किया जाए ताकि इस सम्मेलन में मैं हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सकूँ। लेकिन शंकराचार्य ने जवाब दिया कि तुम ब्राह्मण जाति के नहीं शूद्र जाति के हो। अत: तुमको हिंदुओं का प्रवक्ता नहीं बनाया जा सकता है। यह तो ग़नीमत है कि श्रीलंका के बौद्ध संगठन की अनुशंसा पर आयोजकों द्वारा विवेकानंद जी को हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप भाग लेने की अनुमति मिल गई। अन्यथा शिकागो के उस सम्मेलन में विवेकानंद जी के ऐतिहासिक भाषण को सुनने और पढ़ने का अवसर हमें नहीं मिलता !
शंकराचार्य के दुर्व्यवहार के कारण स्वामी जी ने अपनी पुस्तक ‘भारत का भविष्य’ में लिखा है कि यदि भारत के भविष्य का निर्माण करना हो तो ब्राह्मणवाद को पैरों तले कुचल डालो.’
विवेकानंद जी के बाद स्वामी दयानंद सरस्वती हमारे देश में महापुरुष हुए. उन्होंने हिन्दू समाज में सुधार हेतु 1875 आर्य समाज की स्थापना की, आर्य समाज मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अन्धविश्वासों को अस्वीकार करता था। इसने छूआछूत और जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने और वेद पढ़ने का अधिकार दिया था। स्वामी जी आर्य समाज के प्रचार के लिए जगह जगह प्रवचन और शास्त्रार्थ करते थे। जहाँ जहाँ स्वामी जी आर्य समाज के सिद्धांतों के प्रचार हेतु प्रवचन करते थे वहाँ वहाँ पीछे से सनातनी लोग उनका खंडन करते घूमते थे। लोगों को वे बताते थे कि स्वामी जी हिंदू धर्म के विरोधी हैं । इसलिए उनकी बात को मानना हिंदू धर्म का विरोध होगा।
अंग्रेज़ों ने दलितों के लिए, मुसलमानों, बौद्धों, ईसाइयों आदि की तरह बाबा साहेब अम्बेडकर की माँग पर मतदान की अलग व्यवस्था की. गाँधी जी ने अंग्रेज़ों के इस फ़ैसले के विरोध में 1932 में यरवदा जेल में उपवास शुरू कर दिया. देश में हलचल मच गई. दलितों के लिए निर्वाचन की अलग व्यवस्था को छोड़ देने के लिए अंबेडकर साहब पर दबाव पड़ा. उस दबाव के चलते अंबेडकर साहब को झुकना पड़ा. गाँधी जी का उपवास टूटा।
इसके बाद गाँधी जी ने छुआ छूत के ख़िलाफ़ देश भर में अभियान शुरू किया. अपने को सनातनी कहने वालों ने जगह जगह उनका विरोध शुरू किया। पूना में तो उनकी गाड़ी पर बम फेंका गया था। उस अभियान के तहत गांधी जी बिहार भी आए थे. बिहार में देवघर जाने के क्रम वे जसीडीह पहुँचे। वहाँ अगर उनके समर्थकों ने उनकी सुरक्षा के लिए मज़बूत इंतज़ाम नहीं किया होता तो वहाँ कुछ भी हो सकता था !
देवघर के ही मंदिर में 1956 में बिनोवा भावे पर गंभीर हमला हुआ था। वे कुछ दलित बच्चों के साथ मंदिर में जा रहे थे. उनको बचाने में कुछ लोगों को गंभीर चोट भी आई. बिहार की विधानसभा में इस पर सवाल उठा था।
ज्ञात इतिहास में काशी विश्वनाथ मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था. इसके विरोध में जुझारू समाजवादी नेता राजनारायण जी के नेतृत्व में दलितों ने विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की। वहाँ के पंडों ने राजनारायण जी को बुरी तरह पीटा था।
1969 में पटना में कर्ण सिंह जी के नेतृत्व में पटना में विश्व हिंदू धर्म सम्मेलन हुआ था। उस मौक़े पर औरों के अलावा पूरी के शंकराचार्य और रजनीश जी भी आये थे. उस समय तक रजनीश जी आचार्य रजनीश के रूप में ही जाने जाते थे. पटना में संभवतः पहली मर्तबा आये थे। जगह जगह उनका भाषण हो रहा था. पटना के युवा तो उनके पीछे दिवाना थे। पता नहीं क्या हुआ कि शंकराचार्य जी ने कहा कि वे खत्री हैं। इसलिए वे शास्त्रार्थ के अधिकारी नहीं हैं. इतना ही नहीं एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने कह दिया कि हरिजन पैदाइशी अछूत होते हैं. पटना के प्रेस ने उनका बयान बहुत प्रमुखता से छापा था।
तब मैंने शंकराचार्य के विरूद्ध छूआछूत विरोधी क़ानून के अंतर्गत मुक़दमा दायर किया था. उस मुक़दमे में औरों के अलावा रामबिलास पासवान जी ने भी शंकराचार्य के विरूद्ध गवाही दी थी. आज भी दलितों और पिछड़ों के साथ क्या व्यवहार होता है इसकी खबर आये दिन हम पढ़ते और सुनते रहते हैं !
उनको कभी भी समाज में इज़्ज़त प्रतिष्ठा नहीं मिली. जब पिछड़ों को भारतीय संविधान के तहत सरकार की नौकरियों में आरक्षण मिला उस समय इन्हीं सनातनियों ने सड़क पर उतर कर विरोध किया था। गिरिराज जी मुसलमानों के विरूद्ध विष बमन करते हुए तथाकथित सनातन के नाम पर उनको गोलबंद करने निकलने वाले हैं। जिनको मंदिरों में प्रवेश का अधिकार नहीं था। जो पिछड़े सनातनियों के सामने कुछ वर्ष पहले तक कुर्सी पर बैठ नहीं सकते थे, उनके वोट के लिए गिरिराज जी उनको भी सनातन होने का पाठ पढ़ायेंगे। भारत में बसने वाले पंद्रह सोलह प्रतिशत मुसलमान कौन हैं ! इनका बड़ा हिस्सा एक जमाने में हिंदू समाज के प्रताड़ित लोग हैं। जिन्होंने उस प्रताड़ना की वजह से इस्लाम क़ुबूल कर लिया था। उस पंद्रह सोलह प्रतिशत की आबादी से देश के अस्सी प्रतिशत हिंदू आबादी के मन में डर पैदा कर उनको कायर बनाने के अभियान में आग उगलने वाले गिरिराज जी बिहार की यात्रा पर निकलने वाले हैं, देखिए इसका क्या नतीजा निकलता है।