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शरद पवार दिल्ली में हों और राष्ट्रीय राजनीति के बारे में कोई चर्चा न हो या फिर विपक्ष में उनके सबसे वरिष्ठ व अनुभवी चेहरा होने की बातें न उड़ें यह बहुत कम होता है

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कुन्दन कुमार/एफ़एमटीएस न्यूज़

शरद पवार दिल्ली में हों और राष्ट्रीय राजनीति के बारे में कोई चर्चा न हो या फिर विपक्ष में उनके सबसे वरिष्ठ व अनुभवी चेहरा होने की बातें न उड़ें यह बहुत कम होता है। मंगलवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ। सुबह पार्टी कार्यकारिणी समिति की बैठक के बाद शाम को उन्होंने विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को छोड़कर छिटपुट दलों के नेताओं के साथ बैठक की। इसे भाजपा के विरोध में एकजुटता की कोशिश के रूप में भले ही दिखाया गया हो लेकिन माना जा रहा है पवार का निशाना कांग्रेस है।

वैसे राकांपा नेता माजिद मेनन का कहना है कि इस बैठक में किसी राजनीतिक विषय पर चर्चा नहीं हुई। कार्यकारिणी बैठक के बाद पवार ने खुद जानकारी दी थी कि पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की भूमिका समेत अन्य राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस में शामिल यशवंत सिन्हा की पहल पर दिल्ली में पवार के घर बुलाई गई इस बैठक में वर्तमान राजनीतिक आर्थिक वातावरण पर चर्चा हुई और सभी से सुझाव मांगे गए। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व के तेवर से परेशान पवार कांग्रेस को फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि विपक्षी दलों को एकजुट करने की क्षमता केवल उनमें है।


बंगाल चुनाव के बाद ममता बनर्जी को एकबारगी विपक्षी दलों ने सिर माथे पर उठा लिया था लेकिन पवार यह बताना चाहते हैं कि खुद ममता भी उनके साथ हैं। पवार की बैठक में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल जुटे जरूर लेकिन सच यह है कि नेशनल कांफ्रेस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को छोड़कर कोई भी अपनी पार्टी का बड़ा चेहरे नहीं माने जाते हैं। अन्य गैर राजनीतिक लोगों में जस्टिस एपी शाह, गीतकार जावेद अख्तर, कांग्रेस छोड़कर जा चुके पूर्व प्रवक्ता संजय झा आदि मौजूद रहे।

बंगाल चुनाव के बाद ममता बनर्जी को एकबारगी विपक्षी दलों ने सिर माथे पर उठा लिया था लेकिन पवार यह बताना चाहते हैं कि खुद ममता भी उनके साथ हैं। पवार की बैठक में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल जुटे जरूर लेकिन सच यह है कि नेशनल कांफ्रेस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को छोड़कर कोई भी अपनी पार्टी का बड़ा चेहरे नहीं माने जाते हैं। अन्य गैर राजनीतिक लोगों में जस्टिस एपी शाह, गीतकार जावेद अख्तर, कांग्रेस छोड़कर जा चुके पूर्व प्रवक्ता संजय झा आदि मौजूद रहे।

खुद यशवंत सिन्हा हाल में ही तृणमूल में शामिल हुए हैं और पार्टी के औपचारिक कामकाज में उनका दखल नहीं है पर राष्ट्रमंच बनाकर उन्होंने एक राष्ट्रीय पहल शुरू की है। जाहिर है कि ऐसे में भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा गठबंधन बनाने की चर्चा होना भी संभव नहीं है और उसे रूप देना तो असंभव। खुद माजिद मेनन ने स्पष्ट भी कर दिया कि इसमें राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। जानकारों का मानना है कि इस बैठक के जरिए वस्तुत: कांग्रेस को संदेश दिया गया।

मंगलवार को जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पवार के घर होने वाली बैठक पर प्रतिक्रिया मांगी कई तो उन्होंने भी इसे टाल दिया और कहा कि यह वक्त राजनीति का नहीं कोरोना पर केंद्रित होने का है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले रोजाना परोक्ष रूप से राकांपा को निशाना बना रहे हैं। वहीं पिछले दिनों जब सोनिया गांधी की जगह शरद पवार को संप्रग अध्यक्ष बनाने का परोक्ष संदेश उछाला गया तो कांग्रेस की ओर से सकारात्मक रुख नहीं दिखाया गया था।

सूत्रों का कहना है कि मंगलवार की बैठक कांग्रेस के लिए एक संकेत है। अगर कांग्रेस चाहती है कि भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा तैयार हो तो उसे भी पवार की छत्रछाया में आना होगा।

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